आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने को तैयार हैं, तब कुछ समय निकाल कर उनकी जीत का विश्लेषण करना थोड़ा जरूरी होजाता है। इतना प्रचंड बहुमत और उत्तर प्रदेश में सभी जातीय समीकरणों को धूल चटा देना यह सिद्ध कर रहा है कि देश अब बस जातीय समीकरणों के दम पर नहीं जीता जासकता है। देश को नई उम्मीदों की जरूरत है जो दिखाने में कोई भी सफल नहीं हुआ। मोदी चोर बोलने से यह साबित नहीं होजाता कि आप ईमानदार होगये और लोग आपके सिर्फ 5 साल पहले किये हुए कारनामों को भूल गए। इसके साथ-साथ कुछ प्रमुख मुद्दे जो इस 300+ भाजपा और 350+ राजग के सपने को सफल कर रहे है उसको निम्नवत समझा जासकता है।
पहला तो विपक्ष के पास मोदी के कद और उनके जितना संवाद के द्वारा लोगों के साथ जुड़ाव बनाने वाले नेता का अभाव। विपक्ष में जिस नेता को मोदी को टक्कर देने वाला बताया जारहा था, जैसे कि ममता बनर्ज़ी या राहुल गाँधी(चूँकि उनकी पार्टी तथाकथित राष्ट्रीय पार्टी है) वो मोदी जैसा आकर्षण अपने वोट बैंक के इतर सामान्य लोगों पर बनाने में असफल रहे। ममता बनर्ज़ी का आक्रामक रुख, रैलयों की अनुमति ना देना CBI के साथ हुआ पूरा प्रकरण, थप्पड़ मारने की बात हो या फिर तूफान के समय प्रधानमंत्री से बात ना करना और उन्हें एक्सपायरी प्रधानमंत्री बताना इन सब चीज़ों ने उन्हें मज़बूत नेता की जगह एक तानाशाह नेता ज्यादा प्रस्तुत किया और इसका फायदा बंगाल में तो हुआ ही साथ साथ हिन्दी भाषी क्षेत्रो में भी अत्यधिक हुआ, एक समर्थन मोदी के लिए प्रखर हुआ। वहीं राहुल गाँधी के चौकीदार चोर है को लोगों ने देश के प्रधानमंत्री की बेइज़्ज़ती के तौर पर देखा और शायद ही कोई यह मानने को तैयार हो कि मोदी ईमानदार नहीं है, अन्य कमियाँ होसकती हैं पर शहर से लेकर गाँव तक हर कोई यह मानता है कि मोदी ईमानदार है, तो जो नारा आपके समर्थकों में जोश जगा रहा है जरूरी नहीं वो सामान्य लोगों को भी उतना पसन्द आरहा हो।
दूसरा जिस समय उग्र राष्ट्रवाद की आंधी चल रही हो देश की सेना मुख्य बिंदुओं में हो चुनाव के, यह सही था या गलत इसपे अलग बहस की जासकती है, उस समय राष्ट्रद्रोही कानून को हटाने की बात करना या कश्मीर में सेना की शक्तियों में कमी की बात करना यह दर्शाता है कि कांग्रेस अब सिर्फ कमरों में बैठ के काम करने लगी है और ज़मीन पर लोगों और उनकी भावनाओं से अब उनका कोई जुड़ाव नहीं रह गया है।
तीसरा सबसे प्रमुख कारणों में से एक है जिसने जातीय समीकरणों को भी एक तरह से ध्वस्त कर दिया वो थी सरकार की सामाजिक कल्याण की योजनाएं और उनका सही प्रचार और काफी हद तक सही प्रसार। एक ग्रामीण बैंक के कर्मचारी के नाते लगातर ग्रामीण लोगों के संपर्क से जो जानकारी मिलती रहीं उससे कहा जासकता था कि योजनायों की जानकारी गरीब से गरीब तबके को है।होसकता है कई लोगों को इसका फायदा नहीं हुआ हो पर उनको यह जरूर उम्मीद है कि मोदी काम कर रहा है उनके लिए। उनके बारे में कुछ सोच रहा है और कुछ कमी रह भी गयी है तो वो अगली बार करेगा उसपे भी कुछ। उज्ज्वला योजना, मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री आवास, शौचालय और घर-घर बिजली ये मुख्य योजनाएं रहीं जिनका सीधा फायदा लोगों तक पहुँचा और लोगों ने उसका फल भी दिया।
और अन्त में कहना चाहूँगा कि जो तथाकथित एक समाज के नेता बने बैठे थे और उस जाति पर अपना राज समझते थे उस राजनीत को अमित शाह कि कुशल संगठन क्षमता और रणनीति का ज़बरदस्त जवाब। अमित शाह ने यह साबित किया है आज उनके जितना कुशल रणनीतिकार और संगठन क्षमता में माहिर व्यक्ति इस दौर की राजनीति में शायद ही कोई हो। पिछड़े वर्ग में सेंध लगाना या फिर बसपा - सपा गठबंधन से फायदा उठा लेना हो , नुकसान की जगह, इसके लिए वो तारीफ़ के काबिल हैं। लगभग 50% वोट यह बताते हैं कि फिलहाल मोदी और भाजपा का युग उम्मीदों से कुछ लम्बा चलने वाला है।
प्रधानमंत्री , भाजपा, अमित शाह, राजग और इस देश की जनता को इस ऐतिहासिक जीत की बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं।।
-पुलकित मिश्रा
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शुक्रवार, 24 मई 2019
मोदी 2.0
शनिवार, 18 मई 2019
वैचारिक मतभेद और चरित्र हनन
राजनीतिक परिदृश्य में हमारी तर्क वितर्क की क्षमता कितनी कम होगयी है ये हम लोग पहले भी पढ़ते सुनते रहे हैं। और उसका परिणाम यह होरहा है कि अगर हम किसी के विचारों से सहमत नहीं है तो हम उनके विचारों से तार्किक बहस करने के स्थान पर उनके चरित्र हनन का प्रयास अधिक करने लगते हैं।
होसकता है कुछ प्रतिशत लोगों पर इसका प्रभाव पड़ भी जय पर मुझे ऐसा लगता हैं कि जो लोग गंभीर रूप से राजनीतिक स्वरूप को देख और समझ रहे है वो ऐसी बातों से खुद को दूर रखेंगे। पर लगातार यह देखने में आरहा है कि पढ़े लिखे सही समझ और सही सोच को प्रदर्शित करने वाले लोग भी उसी ढर्रे पर चलना पसन्द कर रहे हैं।
लगातर चरित्र हनन के लिए कभी अटल जी की निज़ी ज़िन्दगी तो कभी किस नेता की लड़की की किस से शादी हुई है या फिर प्रधानमंत्री की शादी को लेकर अपमानजनक विचारों से आमना सामना कर रहे संघ परिवार के लोग भी उसी दौड़ में 50 लाख की गर्लफ्रैंड और अय्याश नेहरू रूपी विचारों को जन्म दिए हुए है ताकि विचारों का मतभेद और विचारों के संघर्ष को निजी चरित्र हनन के द्वारा जीता जा सके। और अब तो धीरे धीरे गाँधी-गोडसे विवाद में देश की आज़ादी के सबसे बड़े नेता , जिनको उनके विरोधी भी सम्मान देते थे ,अपना नेता मानते थे, जिनको रविन्द्र नाथ टैगोर ने महात्मा की उपाधी दी थी और विचारों के तीव्र मतभेद के बाद खुद को दूसरी दिशा में मोड़ लेने वाले नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने जिन्हें सर्वप्रथम बापू कहा, उन्हीं बापू को उनके राजनीतिक विचारों से असहमतियों के कारण विरोध करने वाले और आज के नेताजी बोस प्रेमी लोग चरित्र हनन के जरिये अपने विचारों को अधिक प्रासंगिक बनाने का प्रयास करते दिख रहे हैं।
हमें एक बात समझनी अतिआवश्यक है इस समय कि क्या हमे अपने स्वतंत्रता की लड़ाई के नायकों में से किसी एक को ज्यादा अच्छा बताने के लिए क्या दूसरे को अपमानित करना आवश्यक होगया है।
क्या नेहरू को अय्याश बता के ही पटेल बड़े नेता बनेंगे या गाँधी को अपमानित करके ही नेता जी का मान बढ़ाया जासकता है।
ये लोग हमारी, हमारे देश की धरोहर हैं, हमें सभी को वो सम्मान देना चाहिए जिसपे उनका हक है। नीतियों का विरोध करे पर हम आज जो बोल पारहे हैं इसमें सबसे बड़ा हाथ उन्ही का है तो उस विरोध के समय सम्मान को अवश्य बनाये रखें।
धन्यवाद।।
-पुलकित मिश्रा
मंगलवार, 14 मई 2019
धारा 370 और भाजपा
कश्मीर भारत में जबसे जुड़ा है तबसे जनसंघ और फिर भाजपा का यह सैद्धान्तिक संकल्प रहा है कि जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाना चाहिए और अगर वो सत्ता में आते हैं तो इस करेंगे।
अब कुछ उनके संकल्प की वास्तविकता भी देखी जाए तो पता चलता है कि भजपा 1998 से 2019 तक 11 साल सरकार में रह चुकी है और 2014 से 2019 तक तो पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई गई थी, तब फिर क्या वज़ह रही कि 2019 में भी भाजपा के संकल्प पत्र में 370 हटाने का संकल्प ही दोहराया जाना पड़ रहा है जबकि भाजपा को इससे अधिक उपयुक्त समय अब 2019 के चुनाव के बाद नहीं मिल सके।
सभी तरह के विचारों को सुनने के बाद यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि धारा 370 राजनैतिक संकल्प कम, खुद को कश्मीर की बहुसंख्यक समुदाय के विरुद्ध प्रस्तुत कर के शेष भारत मे बहुसंख्यक समुदाय को अपने पक्छ में लामबंद करना ज्यादा प्रतीत होता है।
और इसी से हम यह भी समझ सकते हैं कि हमारी राजनीतिक सोच किस स्तर पर पहुँच चुकी है कि बस मुस्लिम विरोधी दिखना बाकी सब प्रश्नों को दबा देता है और हम रोज़गार ,विकास जैसे प्रश्नों को परे रख बस भावनाओं के ज्वार में बह जाते हैं।
सोचिये, समझिए, सवाल कीजिये।।
-पुलकित मिश्रा
राजनीतिक परिदृश्य में घटती वाद विवाद और तार्किक संवाद क्षमता
सरकार अपने अंतिम दिनों में है चुनाव लगभग खत्म होने वाले हैं तब इस सरकार का आंकलन करने पर ये निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि अन्य क्षेत्रों में तो सरकार अपने निहित लक्ष्यों से पीछे रही ही है पर राजनीतिक वाद विवाद को उसके द्वारा अपने निम्नतम स्तर पर अवश्य पहुँचा दिया गया है। राहुल गाँधी की किसी भाषण या किसी साक्षात्कार में कही हर बात का विश्लेषण कर उस पर विद्वता दिखाने वाले और मज़ाक बनाने वाले राजनीतिक विशेषज्ञ वही चीज़ मोदी जी के साथ होता देख अपने आपे से बाहर आजाते हैं। और निज़ी हमकों में ज्यादा ध्यान देते हैं उनके कहे को तार्किक बताने के लिए। चूंकि माननीय प्रधानमंत्री जी ने पिछले पाँच साल केवल मन की ही बात की है कोई साक्षात्कार नहीं दिया जिसमें उनसे सवालों के जवाब लिए जाएं और दिया भी है तो बस फ़क़ीरी बढ़ा ली है उनमें अपनी ,और सवाल भी कैसे कि आप इतनी फ़क़ीरी लाते कहाँ से हैं!,
अब जबकि चुनाव प्रचार के लिए साक्षात्कारों की श्रृंखला सामने आरही है तो अब लोग उनकी भी कही हर बात हर शब्द का विश्लेषण कर रहे हैं तब जो राहुल गाँधी पर पूरे दिन बहस कर सकते थे वो मोदी जी की कही दो बातों को भी ठीक से नहीं सुन पारहे हैं।
हमें नहीं पता प्रथम सेवक कैसे थे उन्होंने क्या गलतियां की, जो कि अवश्य की ही होंगी आखिर थे वो भी इंसान ही, क्योंकि हम उस सदी में नहीं जन्मे हमने उनको नहीं देखा उनको नहीं सुना और शायद इतिहास जो लिखा गया वो हमें सब कुछ ना बताये पर प्रधान सेवक जी को देखने सुनने और समझने के लिए हम इस सदी में मौजूद हैं और जो हम देख पारहे हैं पता नहीं इतिहास उसे कैसे बयां करेगा पर प्रधान सेवक अभी प्रथम सेवक की आलोचना कर सकें ,उस लायक उपलब्धियों को प्राप्त करने से अभी कुछ मील दूर अवश्य हैं।।