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शुक्रवार, 24 मई 2019

मोदी 2.0

आज जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने को तैयार हैं, तब कुछ समय निकाल कर उनकी जीत का विश्लेषण करना थोड़ा जरूरी होजाता है। इतना प्रचंड बहुमत और उत्तर प्रदेश में सभी जातीय समीकरणों को धूल चटा देना यह सिद्ध कर रहा है कि देश अब बस जातीय समीकरणों के दम पर नहीं जीता जासकता है। देश को नई उम्मीदों की जरूरत है जो दिखाने में कोई भी सफल नहीं हुआ। मोदी चोर बोलने से यह साबित नहीं होजाता कि आप ईमानदार होगये और लोग आपके सिर्फ 5 साल पहले किये हुए कारनामों को भूल गए। इसके साथ-साथ कुछ प्रमुख मुद्दे जो इस 300+ भाजपा और 350+ राजग के सपने को सफल कर रहे है उसको निम्नवत समझा जासकता है।
पहला तो विपक्ष के पास मोदी के कद और उनके जितना संवाद के द्वारा लोगों के साथ जुड़ाव बनाने वाले नेता का अभाव। विपक्ष में जिस नेता को मोदी को टक्कर देने वाला बताया जारहा था, जैसे कि ममता बनर्ज़ी या राहुल गाँधी(चूँकि उनकी पार्टी तथाकथित राष्ट्रीय पार्टी है) वो मोदी जैसा आकर्षण अपने वोट बैंक के इतर सामान्य लोगों पर बनाने में असफल रहे। ममता बनर्ज़ी का आक्रामक रुख, रैलयों की अनुमति ना देना CBI के साथ हुआ पूरा प्रकरण, थप्पड़ मारने की बात हो या फिर तूफान के समय प्रधानमंत्री से बात ना करना और उन्हें एक्सपायरी प्रधानमंत्री बताना इन सब चीज़ों ने उन्हें मज़बूत नेता की जगह एक तानाशाह नेता ज्यादा प्रस्तुत किया और इसका फायदा बंगाल में तो हुआ ही साथ साथ हिन्दी भाषी क्षेत्रो में भी अत्यधिक हुआ, एक समर्थन मोदी के लिए प्रखर हुआ। वहीं राहुल गाँधी के चौकीदार चोर है को लोगों ने देश के प्रधानमंत्री की बेइज़्ज़ती के तौर पर देखा और शायद ही कोई यह मानने को तैयार हो कि मोदी ईमानदार नहीं है, अन्य कमियाँ होसकती हैं पर शहर से लेकर गाँव तक हर कोई यह मानता है कि मोदी ईमानदार है, तो जो नारा आपके समर्थकों में जोश जगा रहा है जरूरी नहीं वो सामान्य लोगों को भी उतना पसन्द आरहा हो।
दूसरा जिस समय उग्र राष्ट्रवाद की आंधी चल रही हो देश की सेना मुख्य बिंदुओं में हो चुनाव के, यह सही था या गलत इसपे अलग बहस की जासकती है, उस समय राष्ट्रद्रोही कानून को हटाने की बात करना या कश्मीर में सेना की शक्तियों में कमी की बात करना यह दर्शाता है कि कांग्रेस अब सिर्फ कमरों में बैठ के काम करने लगी है और ज़मीन पर लोगों और उनकी भावनाओं से अब उनका कोई जुड़ाव नहीं रह गया है।
तीसरा सबसे प्रमुख कारणों में से एक है जिसने जातीय समीकरणों को भी एक तरह से ध्वस्त कर दिया वो थी सरकार की सामाजिक कल्याण की योजनाएं और उनका सही प्रचार और काफी हद तक सही प्रसार। एक ग्रामीण बैंक के कर्मचारी के नाते लगातर ग्रामीण लोगों के संपर्क से जो जानकारी मिलती रहीं उससे कहा जासकता था कि योजनायों की जानकारी गरीब से गरीब तबके को है।होसकता है कई लोगों को इसका फायदा नहीं हुआ हो पर उनको यह जरूर उम्मीद है कि मोदी काम कर रहा है उनके लिए। उनके बारे में कुछ सोच रहा है और कुछ कमी रह भी गयी है तो वो अगली बार करेगा उसपे भी कुछ। उज्ज्वला योजना, मुद्रा योजना, प्रधानमंत्री आवास, शौचालय और घर-घर बिजली ये मुख्य योजनाएं रहीं जिनका सीधा फायदा लोगों तक पहुँचा और लोगों ने उसका फल भी दिया।
और अन्त में कहना चाहूँगा कि जो तथाकथित एक समाज के नेता बने बैठे थे और उस जाति पर अपना राज समझते थे उस राजनीत को अमित शाह कि कुशल संगठन क्षमता और रणनीति का ज़बरदस्त जवाब। अमित शाह ने यह साबित किया है आज उनके जितना कुशल रणनीतिकार और संगठन क्षमता में माहिर व्यक्ति इस दौर की राजनीति में शायद ही कोई हो। पिछड़े वर्ग में सेंध लगाना या फिर बसपा - सपा गठबंधन से फायदा उठा लेना हो , नुकसान की जगह, इसके लिए वो तारीफ़ के काबिल हैं। लगभग 50% वोट यह बताते हैं कि फिलहाल मोदी और भाजपा का युग उम्मीदों से कुछ लम्बा चलने वाला है।
प्रधानमंत्री , भाजपा, अमित शाह, राजग और इस देश की जनता को इस ऐतिहासिक जीत की बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं।।
                                                           -पुलकित मिश्रा

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